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वास्तु और भ्रांतियाँ

वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों को जानने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम वास्तुशास्त्र के बारे में प्रचलित भ्रांतियों को समझें। जितनी तीव्रता से भारतीय वास्तुशास्त्र की स्वीकार्यता बढ रही है उतनी ही तीव्रता से समाज में वास्तु को लेकर स्वप्रयोगधर्मिता, भ्रांतिया एवं व्यवसायीकरण बढ रहा है। जानकारी के अभाव में कई बार वास्तु के नियमों की गलत व्याख्या कर दिए जाने से अनजाने में ही लोग न केवल उसका पालन कर लेते हैं वरन् कालान्तर में वह एक धारणा बन जाती है। किसी भी विज्ञान के लिए इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो नहीं सकती है। अगर रोग है तो उपचार भी है बशर्ते कि उपचार तर्क संगत और प्रामाणिक हो।

यही नहीं लोग बिना वास्तुशास्त्र और चीनी वास्तु फेंगसुई में अंतर समझे वास्तु उपायों के नाम पर व्यावसायिकता के शिकार हो रहे है। ’लाफिंग बुद्धा’ (जो किसी भी तरह से भगवान बुद्ध जैसे नहीं दिखते बल्कि हंसोड बुजुर्ग की प्रतिभा भर है) को बनाने वाली फैक्ट्रीयों के मालिक मालामाल हो गए है। चीन में बुद्ध को शुभ माना जाता है इसलिए फेंगसुई में इस हंसोड प्रतिमा का नाम लाफिंग बुद्धा रखा हुआ है। ’लाफिंग बुद्धा’ का उपयोग करने वाले के लिए वह शुभ हो या न हो परंतु उनके निर्माताओं के भाग्य का उदय अवश्य हो गया है। यही नहीं भोली- भाली जनता  में इन दिनों यह भ्रांति फैला दी गई है कि लाफिंग बुद्धा को खरीदने की बजाय यदि कोई मित्र परिजन को भेंट करें और फिर अपने घर में उसे सजाए तो और भी शुभ होता है। यानि पहले कोई आपके भेंट करें। प्रत्युतर में आप भी उन्हे लाफिंग बुद्धा भेंट करे ताकि कम्पनी का माल दो गुना बिके।

उल्लेखनीय है कि भारतीय वास्तुशास्त्र मार्बल, सेंड स्टोन इत्यादि लगाने का समर्थन करता है जबकि ग्रेनाइट व क्वार्ट्ज़ स्टोन लगाने का निषेध करता है क्योंकि सेंड स्टोन व सगंमरमर से अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा और ग्रेनाइट, क्वार्ट्ज आदि पत्थरों से नकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित होती है। बहुत से लोग और कुछ विद्वान भी इस भ्रांति के शिकार हैं कि मार्बल लगाना वास्तु के अनुरूप नहीं है। वास्तविकता इससे बिलकुल विपरीत है। इससे संबन्धित विस्तृत आलेख यदि हमारे पाठक चाहेंगे तो शीघ्र ही इस वैबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा, जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि मार्बल का उपयोग करने के पीछे की वैज्ञानिकता क्या है और न लगाने संबंधी भ्रांति के मूल मे क्या है?

वास्तु शास्त्र के चमत्कारिक परिणामों की यत्र-तत्र चर्चा जहां एक ओर अधिकारिक लोगो को वास्तु को परखने के लिए प्रेरित कर रही है वही भोले-भाले लोगों से अधिकाधिक फायदा उठाने की नियत से कुछ लोग भांति-भांति के तरीके ढूंढने में भी लगे रहते है जिससे वास्तुशास्त्र एवं वास्तु सलाहकारों की प्रतिष्ठा पर भी आंच आती है।

                कुछ वर्ष पूर्व कोलकाता में मेरे एक क्लांयट के यहां आए एक सज्जन ने मुझ से उनका विजीटिंग कार्ड वास्तुशास्त्र के अनुरूप डिजाइन करने का आग्रह किया तो मुझे बडी हैरत हुई। हैरत और बढ गयी जब यह पता चला कि वो अपना कार्ड पहले भी वास्तु विज्ञान के अनुरूप डिजाइन करवा चुके है। इसी प्रकार से हाल ही में समाचार-पत्र में वास्तु विज्ञान से संबधित एक आलेख में एक ’वास्तु विशेषज्ञ’ ने वास्तुशास्त्र के अनुसार वेबसाइट डिजाइन करने के तरीको का उल्लेख किया है एवं बताया कि कम्प्यूटर स्क्रीन के ऊपरी भाग को पूर्व मानते हुए शेष दिशाओं को सुनिश्चित कर लें एवं तदनुरूप वास्तु नियमों का पालन करते हुए वेबसाइट बनाएं। मैं सुधि पाठकों को विनम्रता से आग्रह करना चाहता हूॅं कि इस तरह के हथकंडो से बचे।

                हमारे मान लेने से किसी तरफ कोई दिशा नहीं हो जाएगी। दिशाएं जिधर है वही रहेगी। इस काॅलम में पहले ही तर्क सहित उल्लेख किया जा चुका है कि वास्तु विज्ञान के समस्त नियमों का पालन भौगोलिक उत्तर को आधार मान कर भी नहीं करना चाहिए। वरन् चुंबकीय उत्तर को महत्व दें क्योकि उतरायण एवं दक्षिणायन में सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता दृष्टिगोचर होता है परन्तु उत्तरीधु्रव अपने स्थान पर ही स्थिर है।

                वास्तु भी स्थिर वस्तुओं पर ही लागू होता है न कि विजीटिंग कार्ड, कम्प्यूटर स्क्रीन, वाहन इत्यादि पर जिनकी स्थिति बदलती रहती है अथवा जिनका स्थान परिवर्तन करना संभव हो। किसी भी भूखण्ड या मकान को पकडकर किसी दिशा विशेष की ओर घुमाना व्यवहार में संभव नहीं है एवं चुंबकीय उत्तर एवं तदनुरूप अन्य दिशाएं सदैव उस भूखण्ड अथवा भवन से नियत और ही बने रहते है।

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